पीलीभीत :बाघ संरक्षण के दावे, पुराने हथियार, अधूरा स्टाफ..सुरक्षा कर रहे ग्रीन सोलजर्स!

पीलीभीत, न्यूज़ आईएनबी।  बाघों की संख्या को लेकर दंभ भरने वाले पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा ही खतरे में है। हालांकि जिम्मेदार आधे स्टाफ और संसाधनों की कमी के बीच ही बाघों की रखवाली के दावे कर रहे हैं। वर्तमान में यहां वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा को महज 50 फीसदी ही स्टाफ तैनात है। खास बात तो है कि वनकर्मियों को गाहे बगाहे पुराने हथियार तो थमा दिए जाते हैं, मगर इनको चलाने का प्रशिक्षण भी लंबे अरसे से नहीं दिया गया है। ऐसे में वन और वन्यजीवों की सुरक्षा को खतरा होना लाजिमी है।

73 हजार हेक्टेयर में फैले टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों और वन संपदा की सुरक्षा लिए पांच वन रेंज हैं। नौ जून 2014 को टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यहां संसाधनों के साथ अत्याधुनिक हथियारों से लैस पर्याप्त मात्रा में स्टाफ  तैनात किया जाएगा, मगर दावे खोखले ही साबित हो रहे है। घोषणा के करीब छह साल बीतने के बाद भी पीटीआर प्रशासन टाइगर कंजर्वेशन प्लान नहीं बना पाया था। जिसका यह निकला कि पीटीआर के बाघ आबादी क्षेत्रों की ओर दस्तक देने लगे और मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में तेजी से इजाफा होने लगा। इसमें मात्र इंसानों को ही नहीं बल्कि बाघों को भी अपनी जान गंवानी पड़ रही है। हालांकि छह साल बाद पीटीआर के कंजर्वेशन प्लान को मंजूरी मिली|

कंजर्वेशन प्लान के बनने के बाद बाघ एवं वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर जिन बड़े कामों की उम्मीद जा रही थी, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। इस बीच पीटीआर ने बाघों की संख्या लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड भी जीता, लेकिन इनकी सुरक्षा को लेकर कभी कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। वर्तमान में पीटीआर में तैनात स्टाफ की बात करें तो यहां स्वीकृत पदों के सापेक्ष मात्र 50 फीसदी ही स्टाफ तैनात है।

पुराने हथियारों के दम पर सुरक्षा में लगे हैं ग्रीन सोल्जर्स  
वर्तमान में जहां अपराधियों के हाथों में नाइन एमएम और .32 बोर की अवैध पिस्टल और बंदूकें होती है। वहीं पीटीआर के वनकर्मियों के पास दो से तीन दशक पुरानी 15 बोर की 46 राइफलें और और 25 डबल बैरेल बंदूकें है, मगर किसी का कोई भरोसा नहीं।

खास बात यह है कि वनकर्मियों को हथियार तो थमा दिए गए, मगर इनमें अधिकांश को हथियार चलाने का लंबे अरसे से प्रशिक्षण ही नहीं मिला है। हालांकि पीटीआर के अफसर वन कर्मियों के तैनाती पूर्व प्रशिक्षण दिए जाने के दावा कर रहे है, लेकिन इसके बाद यह वनकर्मी हथियार चला पाते है या नहीं, इसकी पड़ताल करने की कभी कोई कोशिश नहीं की गई। अधिकांश वनकर्मी गश्त या निगरानी के दौरान लाठी डंडों के सहारे हर नजर आते हैं।  

ऐसे में जाहिर है कि राइफल, बंदूकें और कारतूस मालखाने में पड़े होंगे, जो शायद अब चलाने के काबिल नहीं रहे होंगे। बताते हैं कि राइफल की रखी गोलियां तो एक बारगी चला भी सकते हैं, मगर डबल बैरल बंदूक की गोलियां खराब हो जाती हैं।

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