बिहार में नीतीश सरकार का आज फ्लोर टेस्ट है। इसको लेकर राज्य में सियासी हलचल तेज है। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ओर से सत्तापक्ष को कड़ी चुनौती दी जा रही है। लेकिन विश्वासमत प्रस्ताव के दिन जिस तरह से सियासी समीकरण में बदलाव होता दिख रहा है,उसे देखकर राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे है कि तेजस्वी यादव का तिलिस्म बिखर गया है। हालांकि सीएम नीतीश कुमार को काफी दम लगाना पड़ा, जबकि बीजेपी की रणनीति कारगर हुई।
बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का मिशन ‘खेला होबे’ की हवा निकलते दिख रही है। रविवार तक की राजनीतिक स्थितियों को देखे तो जिस मैजिक नंबर के सहारे तेजस्वी यादव खेला करना चाहते थे, उसके करीब भी नहीं पहुंच पाए। उनका खेला बेअसर भी नहीं हुआ। तेजस्वी यादव ने मनोवैज्ञानिक दबाव बना कर एनडीए रणनीतिकारों की भी धड़कन तो तेज कर ही दी।
खाली हाथ नहीं रहे तेजस्वी!
ऐसा नहीं कि तेजस्वी यादव के खेला का असर नहीं दिखा। भले वो तख्ता पलट के मैजिक नंबर से फिलहाल दूर नजर आ रहे, लेकिन नीतीश कुमार के साथ साथ भाजपा शीर्ष नेतृत्व के बनाए चक्रव्यूह को भेद अपनी राजनीतिक कद को बढ़ा तो लिया ही है। जेडीयू को ही लें तो तेजस्वी की रणनीति के आगे नीतीश कुमार का दंभ भी जाता रहा। ये चाहे श्रवण कुमार का भोज हो या विजय चौधरी के यहां हुई विधायकों की बैठक। इन दोनों स्थानों पर विधायकों ने नीतीश कुमार के दंभ को तोड़ डाला। पहले नीतीश कुमार विधायकों के आने के बाद आते थे। मगर इस बार नीतीश कुमार को आपने विधायकों के आने की राह देखनी पड़ी। फिर भी अंततः 3 विधायकों ने बैठक से खुद को अलग रखा और अपने फोन को भी बंद रखा। इनमे बीमा भारती, सुदर्शन कुमार और दिलीप राय शामिल हैं।
जेडीयू-बीजेपी के 6 विधायकों की नाराजगी काफी नहीं
बहरहाल, तेजस्वी यादव का प्रयास का रंग वो नहीं दिखा जो सत्ता पक्ष की ओर से स्पीकर के खिलाफ लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव को सदन में गिरा दें। ऐसा इसलिए कि इस अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य विधान सभा में मौजूद सदस्यों की संख्या पर निर्भर है। एक स्थिति यह मान भी लें कि महागठबंधन एकजुट रहा और 115 विधायक मौजूद रहे। ऐसे में एनडीए के अगर 116 विधायक भी रहेंगे तो विधान सभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के विरुद्ध लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जायेगा।
अभी तक जो स्थिति है तो भाजपा और जदयू के तीन-तीन विधायक गायब हैं। तब भी एनडीए विधायकों की संख्या 122 रहेगी। और अगर मान लें कि हम के चार विधायक भी महागठबंधन की तरफ चले गए तब भी एनडीए के पास 118 विधायक रहेंगे। इसलिए अविश्वास प्रस्ताव तभी गिरेगा जब 14 विधायक सदन से अनुपस्थित रहें या फिर क्रॉस वोटिंग करें। यह स्थिति बनते नहीं दिख रही है।
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