Raja Mahendra Pratap Singh University : यूपी सरकार ने 2019 में अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम यूनिवर्सिटी खोलने का ऐलान किया था, जो आज हकीकत बनने जा रही है.
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) मंगलवार को अलीगढ़ के दौरे पर जाएंगे, जहां वे राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी (Raja Mahendra Pratap Singh University)की नींव रखेंगे. यूपी विधानसभा चुनाव (के कुछ महीनों पहले पीएम मोदी के इस यूपी दौरे की चर्चा तो है ही, साथ ही सबके कौतूहल का विषय है कि आखिर राजा महेंद्र प्रताप सिंह कौन थे, जिनके नाम यह विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है. राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighters) होने के साथ पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी थे. यूपी की BJP सरकार ने 2019 में अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम यूनिवर्सिटी खोलने का ऐलान किया था, जो आज हकीकत बनने जा रही है. उन्होंने एएमयू यूनिवर्सिटी (AMU University) की स्थापना में भी मदद की थी.
राजा महेंद्र प्रताप स्वाधीनता के आंदोलन में शामिल रहे. विकीपीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महेंद्र प्रताप ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान काबुल में भारत की पहली निर्वासित अंतरिम सरकार की घोषणा की थी और खुद को उसका राष्ट्रपति घोषित किया था.वो आजाद भारत में बड़े समाज सुधारकों में भी एक रहे. राजा महेंद्र प्रताप ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे कई संस्थानों के लिए ज़मीन दान की थी.
लेकिन भारतीय इतिहास में कभी उन्हें वो प्रसिद्धि या सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे. कहा जा रहा है कि इस जाट नेता के नाम पर यूनिवर्सिटी के जरिये बीजेपी की नजर समुदाय के वोट बैंक पर भी नजर है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी भूमिका रखते हैं. किसान आंदोलन के मद्देनजर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में पश्चिम यूपी में इस बार बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती पेश आने वाली है.
हाथरस जिले की रियासत के राजा
राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी यूपी के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे. महेंद्र प्रताप सिंह पढ़े-लिखे थे और रूढ़ियों और परंपराओं को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने समाज सुधारों में अहम भूमिका निभाई. वो लेखक और पत्रकार की भूमिका भी उन्होंने निभाई. राजा महेंद्र प्रताप ने लंदनने 1911 के बाल्कन युद्ध में हिस्सा लिया था.
बाल्कन युद्ध में भी हिस्सा लिया
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1915 में अफगानिस्तान में भारत की पहली निर्वासित सरकार का ऐलान कर अंग्रेजों को सीधे चुनौती दी. तीन दशक से ज्यादा वक्त भारत से बाहर गुजारते हुए महेंद्र प्रताप ने देश की आजादी के लिए अथक संघर्ष किया. उन्होंने जर्मनी, रूस और जापान जैसे देशों से गठजोड़ कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने की कोशिश की, पर ज्यादा सफलता नहीं मिली.
मथुरा से चुनाव लड़ा और जीते
राजा महेंद्र प्रताप 1946 में भारत वापस आए और सबसे पहले वर्धा में महात्मा गांधी से मिलने पहुंचे. महेंद्र प्रताप ने 1957 में मथुरा से चुनाव लड़ा और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बड़ी जीत दर्ज की. इस सीट पर जनसंघ प्रत्याशी के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव मैदान में थे, लेकिन महेंद्र प्रताप भारी पड़े. हालांकि चौधरी दिगंबर सिंह ने इसी सीट पर उन्हें 1962 में परास्त कर अपनी हार का बदला ले लिया. हालांकि राजनीति उन्हें ज्यादा रास नहीं आई. अप्रैल 1979 में उनकी मृत्यु हो गई.